खो गई आशिकी
ग़ज़ल
212 212 212 212
मैं इधर से उधर भागती रह गई l
कश्मकश ज़िंदगी नाचती रह गई ll
खो गई आशिकी कौन से मोड़ में l
नज़र मेरी उन्हें ढूँढती रह गई ll
उम्र ढलती गई इश्क के शहर में l
चाँदनी चाँद को झाँकती रह गई ll
चल दिए सामने से न देखा मुझे l
आज मैं फ़िर उन्हें ताकती रह गई ll
ज़िंदगी साथ जीने की ख्वाहिश लिए l
इश्क की डोर मैं बाँधती रह गई ll
✍ दुष्यंत कुमार पटेल