खो गईं।
वेदना तो बहुत है
संवेदनाएं खो गई
मौत तो दुगुनी हुई
पर सांत्वनाएं खो गईं।
स्वार्थ का है बोल बाला,
हर तरफ संसार में
प्रेम, ममता, स्नेह की
संभावनाएं खो गईं।
बेईमानी और रिश्वत ने
कुछ घेरा इस तरह
कागजों की परत पर
सब योजनाएं खो गईं।
विवाह मंडप तो सजा
पर दहेज की बालिवेदी पर
नव नवेली वधु की
सब तमन्नाएं खो गईं।
धर्म गुरु नेता उपदेशक
बहुत हैं इस देश में
प्रवचन तो बहुत हैं
सब प्रेरणाएं खो गईं।
भेद सारे खोल डाले
ज्ञान से विज्ञान से
मानव मानव न रहा
सब भावनाएं खो गईं।
रिश्तों की पावन सलिला
कुछ इस तरह गंदली हुई
तोड़ कर तटबंध को
सारी सीमाएं खो गईं।
मैं विचलती ही रही
सपनो के मिथ्या लोक में
चेतना जागी तो
मेरी कल्पनाएं खो गईं।
– रोशनी शर्मा