खोते जा रहे हैं
हरेक पड़ाव पर उम्र खोते जा रहे हैं
मुकम्मल जिंदगी करने के लिए
अतिरिक्त पेशा ढोते जा रहे है।
जरूरत के फेर में चैन खोते जा रहे हैं।
विश्व विवशता से जूझ रहा है।
टकराव आपस में ही दिख रहा हैं।
छिपी चलाकी हरेक पड़ाव पर।
जिसमें शांति खोते जा रहा हैं।
तनाव हैं जीवन में ज्यादा
गैर अपने होते जा रहे हैं।
अपने का अपनापन खोते जा रहे हैं।
पूर्णता इश्क है जिंदगी
जिद्द में इश्क भी खोते जा रहे है व्यक्ति _ डॉ. सीमा कुमारी
बिहार,भागलपुर, दिनांक-3-4-022मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं