खोखला तंत्र, भ्रष्टाचार का मंत्र
खोखला तंत्र, भ्रष्टाचार का मंत्र
काला धन कहकर, इसको
मुद्रा की, खिल्ली उड़ाई है ।
दर-दर रिश्वत देकर, मैंने
मेहनत से ,पूंजी कमाई है ।।
इन घोटालों नें ही, आज
सरकार की, नींद जगाई है
नित्य नए घोटालों की
इसनें ही तो, परत हटाई है।।
देश-विदेश में, इन घोटालों ने
चर्चा खूब, कमाई है ।
रिश्वत खाकर, झोली भरने वालों की
अभी तो ,शामत आई है ।।
मुझे पता, इस धन की कीमत
गाढ़ी ये, खून कमाई है।
भागा हूं मैं, देश छोड़कर
जब रिश्वत, बहुत खिलाई है ।।
ठेंगा दिखा- दिखा कर, सबको
लंका में, सेंध लगाई है।
मैं प्यादा शतरंज का हूं, तो
वजीर की हुई, कमाई है ।।
काला धन तुम, खूब कमाओ
पाबंदी ना ,कोई लगाई है ।
भ्रष्ट लोगों के, रहते ही तो
होली में, दिवाली आई है ।।
रहा मैं जब तक ,अपने देश में
नींद सभी को ,आई है ।
भागा जब मैं, देश छोड़कर
मेरे पीछे ,पुलिस लगाई है ।।
मौज मस्ती के, दिन आए तब
सरकार ने, सजा सुनाई है।
जब तक रहा ,देश के भीतर
हुकूमत, मैंने चलाई है ।।
क्यों ना पनपे, भ्रष्टाचार की जड़ें
जब नींव ही, कच्ची बनाई है ।
खोखला है ,इस देश का तंत्र
भ्रष्टाचारी की ,मौज आई है ।।
फर्जी चिटफंड, कंपनियों पर क्या
कोई गाज ,गिर पाई है ।
खुदकुशी करेगा, आज किसान ही
जिसकी ना ,कोई भरपाई है ।।
दोषारोपण, करते हो मुझ पर
मेरी आँख, भर आई है ।
अपनी बिगड़ी ,व्यवस्था सुधारो
जिसकी होती, जग हंसाई है ।।