” खेल शब्दों का “
शब्द से मिले
गर मान सम्मान ,
तो कहीं शब्द
करा दे अपमान ।
शब्द बिगाड़े
कहीं काज ,
तो शब्द बना दे
कहीं बिगड़े काज ।
कोई शब्दों के
मायाजाल में उलझा दे,
तो कोई शब्दों से
उलझे को सुलझा दे ।
कोई शब्दों से
बाण चला दे,
तो कोई शब्दों से
जख्म पर मरहम लगा दे ।
कहीं शब्दों से
नफरत झलकती है,
तो कहीं शब्दों से
प्रीत बरसती है ।
कर दे कोई शब्द से
पल भर में किसी को बेगाना,
तो कोई शब्द से
बना ले किसी को अपना।
शब्दों का खेल है
ये देखो सारा,
“पूनम”जैसे करें प्रयोग
दर्शाता है ये संस्कार हमारा।
@पूनम झा।कोटा,राजस्थान