खेल/मेल/तेल….
हाड़ माँस केवल बचा, बंद हुआ सब खेल।
दीपक जलता है तभी, जब उसमें हो तेल।।
जिजीविषा में है फसा, इस जीवन का रेल।
ममता माया मोह से, प्रीत किये दुख झेल।।
हो जाता है जिस जगह, उलटा-सीधा मेल।
जीवन भर चलता वहाँ, उठा-पटक का खेल।।
कुछ पाया कुछ खो दिया, इस जीवन का खेल।
दुखी कभी होना नहीं, करो पास या फेल।।
प्रेम मिला जीवन मिला, वरना रूखा खेल।
जीवन खुशियों के बिना, लगता लम्बी जेल।।
दिन भर टीवी देखना, सदा रहा था खेल।
फर्क पड़ेगा क्या उसे, हुआ अगर जो फेल।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली