खेल कराते मेल
व्यस्तता की गहरी खाई में,
भौतिकता की अंगड़ाई में,
जहाँ अपना कोई न समझे,
हो रहा जहाँ पर ठेलमठेल,
देखो तब खेल कराते मेल।
मानव को मानव से जोड़े,
हाथ मिला विष नाता तोड़े,
दूरी दिल की या हो मीटर,
राह के रोड़े देते हैं ठेल,
देखो हैं खेल कराते मेल।
भावना भरी है भाईचारे की,
जय हो ऐसे खेल प्यारे की,
कटुता द्वेष सब भूल जाते,
जब हो मैदां में रेलमरेम,
देखो ना खेल कराते मेल।
जीवन की इस लघुता में,
भौतिकता की पंगुता में,
प्यार से सबको गले लगाएं
आओ मिलकर खेले खेल,
देखो हैं खेल कराते मेल।
★★☆★★★☆★★★★
अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
★★★★★★★★★★★