खेल ऐसे हो जो खर्च रहित हो ! प्रेम और ध्यान बढ़े !!
मन चाहता है खेल लें !
आज भी अक्कड़ बक्कड़ बंबई बो
गिने गिनाए पूरे सौ !
लेकिन सौ कभी नादानी में पूरे होते थे !..आज नहीं !
आशा पाशा कौन सा पाठ !
बोल कितने अंक !
पेज खोला जाता है !
उतने ही मिलते !
खुशी का ठिकाना नहीं !
झूम उठते !
गिनती वाले अक्षरों पर निशान लगा देते थे !
भर जाने पर किताब बदल लेते थे !
नाराज कभी नहीं होते थे !
छुपा छुपी
क्या ! बात थी !
पैसा बिलकुल नहीं लगता था !
सर्वांगीण विकास होता था !
ध्यान बढता है !
क्रोध घटता है !
प्रेम और सहयोग का उद्गम !