खेत से बिछड़ने का वक़्त नजदीक हैं
पीले पड़ते अपने बदन के कमरे में
थकी थकी सांसों को मुट्ठी में भींचे
उतरी जब खेत की मेड से नीचे
धान के जर्द होते बाल ने
फुसफुसाते हुए मेरे कानों में कहा
खेत से बिछड़ने का वक़्त नजदीक हैं
जर्द बीज से लहलहाते हरे भरे फसल के
सफ़र का अंत जर्द हो जाने में ही है
अभी खेत से पेट तक का सफर है बाकी
अभी थाली में सफेद मोगरे के पुष्प की
झांकी उतरनी बाकी है
जहां वो इष्ट हो जाएगी और
ग्रहण करने वाले वो दास
जिनकी सांसे इसी से बाकी है
~ सिद्धार्थ