*खूबसूरत नक्श नहीं निगाहें हैँ*
खूबसूरत नक्श नहीं निगाहें हैँ
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खूबसूरत नक्श नहीं निगाहें हैँ,
दीवानें हर दम भरते आहें है।
प्रेम की आंधी मे बहती भावना,
मन को भाती प्यार की राहें हैं।
महल अटारी लगते सभी फीके,
गौरी का घर साजन की बाँहें हैँ।
कोई किसी का हुआ मीत नहीं,
कुदरत की मिलती पनाहें हैँ।
मनसीरत की ऑंखें ही तीर्थ है,
आँसू मोती मन छिपी कराहें हैँ।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)