खूबसूरत घड़ी
*** खूबसूरत घड़ी ***
*******************
खूबसूरत थी वो घड़ी,
जब नज़रे नजर से लड़ी।
देख कर देखता रह गया,
पास कुछ भी न रह गया,
सामने आ जब वो खड़ी।
जब नज़रे नज़र से लड़ी।
दुधिया रंगी हसीं मुखड़ा,
वो महताब का टुकडा,
माला मोतियों की जड़ी।
जब नज़रे नज़र से लड़ी।
अंग-अंग में खुशबू भरी,
बगिया जैसे फूलों फली,
जान सूली पर झट अड़ी।
जब नज़रे नजर से लड़ी।
बस आंखों से आँसू बहे,
मनसीरत तो कुछ न कहे,
सावन की लगी है झड़ी।
जब नजरें नज़र से लड़ी।
खूबसूरत थी वो घड़ी।
जब नज़रे नज़र से लड़ी।
*******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)