Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2022 · 3 min read

खून सनी रोटी

“खून सनी रोटी” (लघुकथा)

दो दिन से जुम्मन दो निवाले भी ठीक से नहीं खा पा रहा था । चाय पर चाय पीता और पेशाब जाता । उसके बाद बीड़ी पर बीड़ी पीता जाता और बेतरह खांसता था। उसकी खांसी इतनी देर तक चलती थी कि लगता था फेफड़ा उछलकर मुंह से बाहर आ जायेगा। जमीला उसे इस तरह खांसता देखकर बुरी तरह से डर जाती लेकिन वो जानती थी कि डरे वो दोनों हैं।

खेती -किसानी को लेकर चल रहे आंदोलन के दरम्यान उनको काम मिल गया था । वो मंगोलपुरी से कपड़े लाते थे और सिंधु टीकरी बॉर्डर पर टोपियां सिला करते थे , जैसे -जैसे धरने की भीड़ दिनों -दिन बढ़ती गयी ,वैसे -वैसे वो दोनों कुर्ते-पायजामे भी सिलने लगे । आंदोलन बढ़ता गया तो उनके लिये आंदोलन वालों की तरफ से एक सिलाई -मशीन का भी प्रबंध कर दिया गया था । वो दोनों कुर्ते तैयार करते जाते थे और आंदोलन करने वाले लोग उन्हें आस पास के गांवों के हर गरीब -गुरबा को पहना देते थे ताकि हर कोई उन्हें आंदोलन का कार्यकर्ता लगे, लेकिन आंदोलन खत्म हुआ तो जुम्मन की हवाइयां उड़ने लगीं।

तभी उसी टोली का एक बन्दा आया और बोला –

“जुम्मन टोपी और कुर्ते सिल लो और ये लो पैसे ,जाकर ब्लड बैंक से खून खरीद लाना , हर कुर्ते और हर टोपी पर खून लगा होना चाहिये”।

“खून क्यों साहब , आप तो खेती -रोटी की बातें किया करते थे , फिर अचानक खून -खराबा क्यों “ जुम्मन ने सकपकाते हुए पूछा ?

बन्दा हँसते हुए बोला –

“खून- खराबा तो होता ही रहता है लेकिन तुम इन सब पचड़ों में न ही पड़ो तो बेहतर है। रहा सवाल तुमने जो बात पूछी । दरअसल वो ऐसा इसलिये है कि इस बार हम जिस आंदोलन वालों को माल सप्लाई कर रहे हैं ,उन लोगों ने खून सने कुर्ते ही मांगे हैं ,शायद मीडिया को दिखाने या मुआवजा हासिल करने का कोई जुगाड़ होगा उन लोगों का ,हमें क्या हमें पैसा मिला ,आर्डर मिला ,हमें अपना आर्डर पूरा करना है ,अब ये तो वो लोग जानें , कि उनकी रोटी आटे में पानी मिलाकर तैयार होगी या आटे में खून मिलाकर “

ये कहकर सिगरेट का धुँआ उड़ाता हुआ और जुम्मन को कुछ नोट थमाकर वो बन्दा चला गया।

जुम्मन ने जमीला को कुछ पैसे दिए और कहा –

“तू जाकर कुर्ते के कपड़े ले आ, मैं खून का जुगाड़ करता हूँ , ब्लड बैंक से खून खरीदने से बेहतर है कि मैं खुद अपना खून निकलवा दूं। खून खरीदने के पैसे बच जाएंगे तो कुछ दिन और हमारी रोटी चल जायेगी”।

जमीला ने बड़े अविश्वास से जुम्मन को देखा, न वो कुछ बोल पा रही थी और ना ही कुछ समझ पा रही थी ,अलबत्ता हैरानी उसके चेहरे पर नुमायां थी और आंसुओं से उसकी आंखें झिलमिला रही थीं।

जुम्मन के पास भी जमीला के सवालों का कोई जवाब ना था। उसने बीड़ी का लंबा कश लिया और फिर बेतरह खांसता हुआ निकल गया। जमीला उसे जाते हुए देखती रही कि उसका पति खून बेचने जा रहा है । अचानक जमीला को लगा कि उसकी आंखों में नमकीन आसुंओं के साथ गर्म खून भी उतर आया है।

समाप्त

Language: Hindi
222 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
संबंधों के नाम बता दूँ
संबंधों के नाम बता दूँ
Suryakant Dwivedi
तेवर
तेवर
Dr. Pradeep Kumar Sharma
शुभ दीपावली
शुभ दीपावली
Harsh Malviya
लक्ष्य
लक्ष्य
Suraj Mehra
सहित्य में हमे गहरी रुचि है।
सहित्य में हमे गहरी रुचि है।
Ekta chitrangini
बेगुनाह कोई नहीं है इस दुनिया में...
बेगुनाह कोई नहीं है इस दुनिया में...
Radhakishan R. Mundhra
बेटियां देखती स्वप्न जो आज हैं।
बेटियां देखती स्वप्न जो आज हैं।
surenderpal vaidya
जुदा होते हैं लोग ऐसे भी
जुदा होते हैं लोग ऐसे भी
Dr fauzia Naseem shad
जिंदगी के तराने
जिंदगी के तराने
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
शहरों से निकल के देखो एहसास हमें फिर होगा !ताजगी सुंदर हवा क
शहरों से निकल के देखो एहसास हमें फिर होगा !ताजगी सुंदर हवा क
DrLakshman Jha Parimal
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
*जरा सोचो तो जादू की तरह होती हैं बरसातें (मुक्तक) *
*जरा सोचो तो जादू की तरह होती हैं बरसातें (मुक्तक) *
Ravi Prakash
तेरे जन्म दिवस पर सजनी
तेरे जन्म दिवस पर सजनी
Satish Srijan
कोरा संदेश
कोरा संदेश
Manisha Manjari
सफलता
सफलता
Paras Nath Jha
जीवन एक मैराथन है ।
जीवन एक मैराथन है ।
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मियाद
मियाद
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
कृष्ण चतुर्थी भाद्रपद, है गणेशावतार
कृष्ण चतुर्थी भाद्रपद, है गणेशावतार
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
साँप और इंसान
साँप और इंसान
Prakash Chandra
प्रेम जब निर्मल होता है,
प्रेम जब निर्मल होता है,
हिमांशु Kulshrestha
2331.पूर्णिका
2331.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
लोगों को जगा दो
लोगों को जगा दो
Shekhar Chandra Mitra
#लघुकथा
#लघुकथा
*Author प्रणय प्रभात*
दोहे
दोहे
अशोक कुमार ढोरिया
आपसी बैर मिटा रहे हैं क्या ?
आपसी बैर मिटा रहे हैं क्या ?
Buddha Prakash
दोहा त्रयी. . . सन्तान
दोहा त्रयी. . . सन्तान
sushil sarna
जिस तरह से बिना चाहे ग़म मिल जाते है
जिस तरह से बिना चाहे ग़म मिल जाते है
shabina. Naaz
विचार और भाव-2
विचार और भाव-2
कवि रमेशराज
गुलाम
गुलाम
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
जात आदमी के
जात आदमी के
AJAY AMITABH SUMAN
Loading...