खुश बाश रहो
जहां रहो खुश बाश रहो दिल से यही आवाज़ निकलती है
डायरी में छुपी तस्वीर तलक ज्जबात मगर कहां पहुंचती है
वो लम्हें कुछ ख़ास ही थे प्रीतम हम तुम जिनमें साथ साथ रहे
बीते कितने सावन जिसमें तुम उसके पास हम अपने साथ रहे
मिली हो बिछड़कर भी मुझे तुम सांसों के आने जाने में
वो सांसें गिनती है मेरी और धड़कन अपना समझती है
धोखा उसको हुआ है मुझ से या धोखे में मैं ही रहा अब तक हूं
दिल में अबतक तुम बसी और वो दिल को मेरे अपना घर समझती है
~ सिद्धार्थ