खुश्बू मेरी मित्र
फूलों की खुश्बू बनी, जब से मेरी मित्र।
रोम-रोम में घुल गया, जैसे कोई इत्र।।
हर्फ-हर्फ महका गई, खुश्बू तेरी याद।
किया कैद कुछ इस तरह, हो न सके आज़ाद।।
मादक खुश्बू से भरा,तेरा बदन गुलाब।
बातों से मोती झड़े,आँखें खुली किताब।।
महक रही हूँ इत्र सी,खुश्बू हो तुम खास।
मिलकर मुझसे दू्र हो,लेकिन लगती पास।।
भीनीं-सी खुश्बू हवा,लेकर आई पास।
तन-मन को छूकर गई, छोड़ गई अहसास।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली