खुशी मिलने लगी है बाज़ार में क्या
वफ़ा नहीं है तुम्हारे मेयार में क्या
तमाम उम्र गुजरेगी इंतज़ार में क्या
लोग अब उदास कम ही दिखते हैं
खुशी मिलने लगी है बाज़ार में क्या
बड़ी टूटी टूटी सी बातें करते हो
धोखा खाए हुए हो ऐतबार मे क्या
बहुत गलतफहमियां है आवाम में
सच नहीं छपता अब अखबार में क्या
तुम ज़ुल्म की खिलाफत क्यूं नहीं करते
तुम्हारे अपने बैठे हैं सरकार में क्या
हमेशा नफ़रत की आग ही भड़काते हो
मोहब्बत नहीं है तुम्हारे किरदार में क्या