खुशियों के इंतजार में
खुशियों के इंतजार में खुशियां चली गयीं।
चंद लम्हों की तलाश में, उम्र ही चली गयी।
बचपन में सोचती रही, जल्दी बड़ी बनूं,
पैसे कमाऊं स्वयं मैं निज स्वप्न भी बुनूं।
जी चाहे जो करूं और स्वछंद मैं रहूं।
गरिमा मयी ,प्रतिष्ठित आदर्श मैं बनूं।
गरिमा बनाने में मेरी उम्र ही चली गयी।
चंद..
खुशियों की तलाश में, नौकरी तलाश ली।
दायित्वों की गठरी मैंने खुद पे लाद दी
जागते,-सोते खुशियों की दुनिया संभाल ली
अनजाने में ही आंखों ने उम्मीदें पाल वीं
साकार स्वप्न करने में नींद ही चली गयी
चंद लम्हों…
सोचा था बंगला लेलूं शायद खुशी मिले।
अपनों की खुशियों से ही मुझको खुशी मिले
खुद रहे अंधेरे में ताकि उन्हें रोशनी मिले।
किश्तें चुकाने में यूं ही नौकरी चली गयी
चंद लम्हों…
आया ख्याल सैनिक परिवार के लिए।
रहता है खुश वो बर्फ में परिवार के लिए।
बस भेजता वो पैसे परिवार के लिए।
दरवाजा तकते बाबा-मां दीदार के लिए
दीदार की ही आस में उम्र ही चली गयी।
चंद लम्हों…
आया नहीं समझ कि खुशियां कहां हैं आखिर।
पर दो पल की जिंदगी में हम सारे हैं मुसाफिर।
दो पल तो साथ रहकर खुशियों से हम गुजारें।
फुर्सत से पाते पल जो चंद सिक्कों पे हम न वारें।।
रेखा कमाने में दौलत उम्र ही चली गयी।