खुशियों की रंगोली
बरसो बाद सजी है मन में
खुशियों की रंगोली ।
तन मन रंगे एक से रंग में
आशाएं बनी हमजोली ।
फेंके ऐसे रंग किसी ने
भीग गए सब गात ।
शुष्क मरू सम अन्तस को
ये दी किसने सौगात ।
कब से दुबका था निर्जन में
सहमा सा मन मेरा ।
तन तो था दुनियां के संग में
पर मन निरा अकेला ।
अन्तस के तम को हर कर
किसने दिया प्रकाश ।
बरसों बाद छंटी दुख बदरी
मन निर्मल आकाश ।
अब मन फिर से उड़ना चाहे
स्वप्निल पंख सजाये ।
मधुमास में मधु स्वप्नों के
पल्लव पुष्पित हो आए ।