खुशियों की आँसू वाली सौगात
ऑथर – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
टॉपिक – माँ का जन्म दिन
शीर्षक – खुशियों की आँसू वाली सौगात
भाषा – हिन्दी
विधा – गद्य
मौलिक अप्रकाशित स्वरचित
बहुत छोटा था मैं जब से मेरी यादाश्त बननी शुरू हुई होगी तभी का याद है उसके हिसाब से मैं कोई 2 साल का रहा होहूँगा, मैं अपने भाई बहनों में बीच का अर्थात तीसरे नंबर का पुत्र हूँ । मुझसे पहले एक भाई एक बहन और मेरे बाद एक भाई एक बहन हा हा हा , तो ये मेरी पहचान है , तो हम बात कर रहे थे आज के टॉपिक – माँ का जन्म दिन पर जो की इस पुस्तक का नाम भी है , मेरे जीवन में माँ सबसे महत्व पूर्ण है जन्म से ही और उसी के जन्म दिवस की बात चली तो ये सोने पे सुहागा हुआ जैसे अर्थात अत्यधिक विशेष ।
मैं चूंकि सभी भाई बहनों में मध्य अर्थात मझला अर्थात बीच की संतान होने के कारण परिवार में दोनों तरफ से पिसता रहता हूँ बड़े अधिकार से मुझसे कार्य के लिए कहते और छोटे प्यार के दबाब से मुझसे कार्य निकलवा लेते थे । एक दिन की बात माँ ने किसी काम से मुझे बाजार भेजा , रास्ते में बड़ी बहन मिल गई उसने मुझे रोक कर एक खास बात बताई और वो थी मेरी मतलब हमारी माँ का जन्म दिन था उसी दिन , वैसे तो उस दिन हम सब सुबह – सुबह मंदिर जाते थे जैसे माँ को पसंद था वहाँ पूजा करते, माँ हमारे सभी के हाँथ पर रक्षा सूत्र बांधती थी और उस दिन हम सभी भाई बहनों से प्रण लेती थी अपने जन्म दिन की सौगात के रूप में कि हम सब एक दूसरे को जीवन पर्यन्त साथ देंगे व किसी के भी कार्य को कभी मना नही करेंगे । कोई भी परिस्थिती हो कोई भी कारण हो हमेशा परिवार के साथ खड़े रहेंगे ।
तो उस दिन भी मैं यही सोच रहा था लेकिन बड़ी बहन का उस दिन कुछ और ही प्लान था उसने मुझे रोक कर जो बताया । वो उस विषय में सभी से पहले ही बात कर चुकी थी बस मुझे ही उस योजना के बारे में नहीं पता था । सो उसने मुझे रोक कर अपनी बात बात जो ये थी , उसके अनुसार हम सब पिता जी के साथ माँ को लेकर शहर के अनाथ आश्रम जाएँगे व वहाँ सब बच्चों के साथ पिकनिक मनाएँगे और माँ के हाँथ से सभी को कोई न कोई उपहार दिलाएँगे । और माँ के लिए भी एक अच्छा सा उपहार लेके देंगे । मुझे बहुत अच्छा प्लान लगा । सो मैंने अपनी सहमति तुरंत दे दी , उसके लिए बड़ी बहन ने मुझ से 200 रुपये मांगे जो मैंने बोला कि घर जाके गुल्लक से दे दूंगा ।
उसके बाद में माँ के अनुसार बाजार से समान लेने चल दिया और बहन घर आ गई । माँ के जन्म दिन पर मंदिर जाने तक हम सब कोई भी खाना आदि नहीं खाते थे कहें तो व्रत रखते थे उस दिन भी ऐसा ही था । घर आने के बाद मैंने बड़ी बहन को गुल्लक से 200 रुपये निकाल के दे दिए । उसने अनाथ आश्रम की सभी जरूरतें बड़े भाई के साथ मिल के पूरी कर ली फिर हम सब माँ के साथ मंदिर गए , पूर्व नियम अनुसार माँ ने सभी रिवाज़ पूरे किये फिर जैसे ही वो हम सब को बोलती की अब घर चलो सब खाना खाएँगे तो उस से पहले बड़ी बहन बोली माँ आज हम आपको एक जगह और लेके जाना चाहते हैं प्लीज मना मत करना । माँ बोली नहीं करूंगी लेकिन कहाँ जाना है , तो पिता जी बोले बच्चे कह रहे हैं तो चलो आज उन्ही की मर्जी । तो माँ मुस्कुरा के चुप रह गई बोली चलो , हम सब ने वहाँ से रिक्शा किया और अनाथ आश्रम आ गए । अनाथ आश्रम को देख कर माँ बोली आ – ओह ये बात है मगर खाली हाँथ कैसे चलेगा कुछ लेके आते तुम लोग ने बताया नहीं – पिता जी बोले शीला जी आप आईये सब हो जाएगा । वो आश्चर्य मिश्रित मुस्कान के साथ बोलीं ओह क्या प्लानिंग है आज पिता जी बोले देख लेना बस आ ही गए , अन्दर जाते ही अनाथ आश्रम के कोई 100 बच्चे एक साथ खड़े थे स्वागत में आगे बढ़ कर उन्होंने माँ का हाँथ पकड़ा उन्हें गुलदस्ता दिया और माला पहनाई फिर एक बड़े हाल में ले के गए जहाँ माँ के नाम का बड़ा सा पोस्टर लगा था जिस पर लिखा था माँ आपको आपके जन्म दिन की असीमित शुभकामनाएँ आप हैं तो हम सब हैं । फिर उन्होंने समवेत स्वर में एक गाना गाया उसके बोल थे , * माँ तू कितनी अच्छी है * और माँ सुनती रही और रोती रही किसी ने उसको नहीं रोका क्यूंकी वो उसके खुशी के आँसू थे । ऐसी सौगात जन्म दिन पर कौन माँ होगी जो पा कर खुशी के आँसू नहीं रो देगी । माँ ने सभी बच्चों को गए से लगाया , विशेष कर उन अनाथ बच्चों को फिर हमारे प्रोग्राम के अनुसार हमने उनको बोला माँ आज आप इन सभी अपनी तरफ से उपहार भी दोगी , जो हम पहले आपके द्वारा उनको देने के लिए लेके आए हैं । फिर माँ ने आश्चर्य के साथ उन सबको उपहार दिए । फिर सबने उनके साथ बैठ कर भोजन किया जिसका उस दिन का सब इंतजाम हमारी तरफ से था अनाथ आश्रम के मेनेजर बोले शीला बहन ऐसा प्रोग्राम मैंने कभी नहीं देखा जो आपके संस्कार से पाले हुए आपके बच्चों ने किया आपके बच्चे बहुत सौभाग्यशाली हैं जो आप जैसी माँ उन्हें मिली । और माँ , वो तो मन ही मन न जाने कितने असीस हम सब को दे रही थी आँखों में खुशी के आँसू लिए ।