” ——————————————खुशियां समेटे थे” !!
ये जो बोल बिखरें हैं , बरसों से समेटे थे !
नाग की तरह ये तो , कुंडली मारे बैठे थे !!
टूटा है भरम सबका , जान गए गहराई!
दुशाले में ये अपना , मुंह जो लपेटे थे !!
पदक यहां आसां नहीं , पद मिल ही जाते हैं !
सफलता के दामन में , खुशियां समेटे थे !!
विरासत में जो भी मिला , छिप नहीं पाता है !
गरिमा चढ़ा भेंट दी , सफलता पे ऐंठे थे !!
उम्मीदों पे उतरें खरे , पलकों पे बैठगें !
गिरे अर्श से फर्श पर , किस्मत लपेटे थे !!
सबके हैं दिन फिरते , कल की खबर किसको !
आज बेदखल हो गए , कुर्सियों पे बैठे थे !!
बृज व्यास