खुशियाँ
ख़ुशियों को लंबी उम्र मिले,
झट आती है चली जाती क्यों!
फूलों जैसी फितरत इनकी,
खिलते ही जल्द मुरझाती क्यों!
ग़म के नासूर बरसों रहते,
ज़ख्मों पर चुभते नश्तर से!
एक दर्द बराबर रहता है,
बीते यादों के मर्ज़ तरह!
ऐ खुशियों अब तो रूठो ना,
इस बार ज़रा तो ठहर जाना!
देखेंगे रहा तुम्हारी हर पल,
वादा करके न मुकर जाना!
एक आवाज़ गूँजती है अंदर,
क्यों बाहर इन्हें खोजते तुम!
यह तो रहती अंतर्मन में,
तुम इन्हें ढूँढते क्यों मृग सम!
सुख-दुख जीवन के दो पहलू,
रंग-वक्त बदल कर आते हैं!
कोई फूलों में कांटे पाते,
कोई ग़म में भी मुस्काते हैं…