खुशियाँ समेट कर फेंक दो अपनी उम्मीदों को सफ़ेद चादर लपेट कर वरना हर शख्स ले जाएगा तुम्हारी खुशियाँ समेट कर -सिद्धार्थ गोरखपुरी