खुशबु रिश्तो की -लघुकथा
खुशबु रिश्तो की
बाबूजी एकदम गुस्सा होकर चिल्ला रहे थे ,”कभी ऐसा हुूँआ ही नहीं की में भूल गया हूँ।”
और सर्वेंट वगैरह कांपने लगे। ८०० रुपये गायब हुए थे उससे ज्यादा तो घर के उसूलो को तोड़ा उसका ज्यादा गुस्सा था।घर के सभी सदस्य भी जमा हो गए।बड़ी भाभी कुछ बोलनें जा रहे थे तभी सिनव ने कुछ इशारा किया तो वो तुरंत समज़ गयी की कुछ गड़बड़ हुई है।तुरंत रुम में जाकर वापस आयी और बाबूजी को ८०० रुपये देते हूँए ,
“माफ़ कीजिये बाबूजी,भूलसे आपकी ड्रेस ड्राइक्लीनिंग में गई उस में रहे गए थे ,मैंने कल पैसे संभालकर रखे लेकिन भूल गयी थी।
“ठीक है ,कोई बात नहीं बहूँ ।” कहकर बाबूजी चुप हो गए।
थोड़ी देर बाद सिनव भाभी के पास गया और नमस्ते करते हँए ,”भाभी आज आपने मुझे बचा लिया,मेरे एक फ्रेंड को फ़ीज़ नहीं भरने कारण एक्ज़ाम में बैठने नहीं दे रहे थे, तो सुब्हे मैंने जल्दी निकलकर पैसे लेकर भर दिये ,लेकिन मैं ये माहौल देख डर गया था इसलिए चुप रहा।
और भाभी ने हँसतें हूँए ,”ठीक है भैया ,लेकिन ऎसी भूल दोबारा नहीं करनां।”
और सिनव शर्मिदा हुँआ लेकिन उसका मन इस सौम्य से रिश्ते की खुशबु से भर गया।
-मनीषा जोबन देसाई