खुराफात हो जाए – डी के निवातिया
खुराफात हो जाए
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शैतानों की भीड़ में अगर इंसान से मुलाक़ात हो जाए,
मैं समझू, की मेरी ईश्वर , अल्लाह से बात हो जाए !!
झूठों के नगर में भरोसा करूँ तो किस पर करूं, यहां,
जाने किस पल दोस्ती में भी खुलेआम घात हो जाए !!
काफ़िरो की इस बस्ती में, ज़ालिमों के इस शहर में,
क्या खबर कब कातिल अपना भाई या तात हो जाए !!
जाति धर्म ही सही कुछ तो नुख्सा असरदार मिले,
आसानी से जिसके नाम, कोई खुराफात हो जाए !!
कबीर, नानक की तालीम तो किसी काम न आई
क्या पता “धर्म” के पर ही अब विख्यात हो जाए !!
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डी के निवातिया