*खुद ही खुद में खो गये लोग है*
खुद ही खुद में खो गये लोग है
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कितने झूठे हो गये लोग हैं,
खुद ही खुद में खो गये लोग हैं।
आपस में सारे सभी खोखले,
रिश्ते नाते ढो गये लोग हैं।
पापों को धोते रहे आम जन,
पुण्यों को भी धो गये लोग हैं।
मरने पर रोते नहीं जान कर,
जिंदा जी ही रो गये लोग हैं।
मनसीरत जड़ तक रहा जानता,
पथ पर काँटे बो गये लोग हैँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैंथल)