खुद स्वर्ण बन
स्वयं स्वर्ण बन ,बन जा कु़ंदन।
तपने से डर कर क्यूं हो क्रंदन।
तू अपनी हर कमी खुद पहचान।
छोड़ बुरे कर्म ,बन तू इंसान।
जिंदगी की तल्खियों से न डर
ये तो है बस इम्तिहान भर।
वक्त की भट्टी, खूब तुझे तपायेगी
वक्त की दी शिक्षा ही काम आयेगी ।
कर्म कर मत बैठ, किस्मत भरोसे
हिम्मत कर ,प्रभु प्रेम करेंगे तो से।
सुरिंदर कौर