खुद से आंख चुराते क्यों हो ।
खुद से आंख चुराते क्यों हो ।
मन में भला छुपाते क्यों हो ।।
तन के भीतर है कस्तूरी ।
वन में मृग भटकाते क्यों हो ।।
सूखी सरिता की रेती में ।
गुमसुम नाव चलाते क्यों हो ।।
पत्थर से रस की आशा कर ।
अपना जिया जलाते क्यों हो ।।
जिसने दूरी बना रखी है ।
उसको पास बुलाते क्यों हो ।।
जान बूझकर जो सोया है ।
उसको यार जगाते क्यों हो ।।
जो दुश्मनी बनाकर बैठा ।
उससे प्यार जताते क्यों हो ।।
जिससे पर का घर जल जाए ।
ऐंसी आग लगाते क्यों हो ।।
– सतीश शर्मा ।