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25 Oct 2020 · 1 min read

खुद को मै जलाता रहा

** खुद को मैं जलाता रहा ***
************************

गमों में भी सदा मुस्कराता रहा
बिना सुर लय के गीत गाता रहा

कुछ न मिला जिंदगी में बेशक
समक्ष सर्वत्र संतुष्ट बताता रहा

मौन होकर गौण मैं देखता रहा
गीत विरोध के गुनगुनाता रहा

पग पग पर परेशां ,ठोकरे खाई
पर गिरे हुओं मैं को उठाता रहा

लोगों की बेहूदा हरकते देख के
क्रोध में खुद को मैं जलाता रहा

अंधेरों में खुद को तन्हा पाकर
तम में ज्योति दीप जलाता रहा

मनसीरत ये दुनिया स्वार्थों भरी
जन जन को मैं समझाता रहा
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
189 Views
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