खुद को मीरा कहूँ
रुक्मणी बनके क्यूँ रोज पीड़ा सहूँ
राधिका बनके क्यूँ एक विरहन रहूँ
प्रेम जब हो गया श्याम तुमसे तो मैं
क्यूँ न जोगन बनूँ खुद को मीरा कहूँ
डॉअर्चना गुप्ता
10.10.2014
रुक्मणी बनके क्यूँ रोज पीड़ा सहूँ
राधिका बनके क्यूँ एक विरहन रहूँ
प्रेम जब हो गया श्याम तुमसे तो मैं
क्यूँ न जोगन बनूँ खुद को मीरा कहूँ
डॉअर्चना गुप्ता
10.10.2014