खुद को भला बताने बाला
खुद को भला बताने बाला,
भला किसी का कब करता है।
सारा श्रेय उसे मिल जाए
बस ऐसे करतब करता है।।
“काम भले कम चर्चा ज्यादा”
ज्यादातर लोगों का मत है।
“नेकी कर दरिया में डालो”
यह तो मात्र कहावत है।
“स्वयं मियाँ मिट्ठू मत बनना”
बाबा आदम कहते थे,
किन्तु ढिंढोरा पीट प्रथा में
सबको लब्ध महारत है।
मृषा प्रशंसाओं के पुल पर,
जो अभ्यस्त हुआ चल चलकर,
यश पाने को जोड़, घटाना,
गुणा, भाग वह सब करता है।।
जो समाज सेवक थे उनका,
बदल गया जीवन का ढर्रा।
निकलें लेकर सुबह कैमरा,
शाम पुण्य का चिट्ठा खर्रा।
दीनों, दुखियों, असहायों को,
कुछ भी दिया न होगा लेकिन,
दानवीरता गाथा गाएँ,
नगर- गाँव का जर्रा जर्रा।
गाल बजाकर धाक जमे जब,
फूला नहीं समाता है तब,
अधिक प्रचार कराये तब तब
कम से कम जब जब करता है।।
गलत नहीं है जुगत लगाकर,
कीर्तिमान स्थापित करना।
अपनी पीठ थपथपा लेना,
साधुवाद विज्ञापित करना।
किन्तु धरातल पर यथार्थ के,
जब उपलब्धि शून्य दिखती है,
अतिशयोक्ति जैसा दिखता है,
राई भी विस्थापित करना।
माना आज युवा पीढ़ी को,
कीर्तिगान अभिप्रेरित करता,
पर ढकोसला, आडम्बर सब
अजब गजब बेढब करता है।।
संजय नारायण