खुद को बड़ा बनाओ तो
बस कहने से नहीं चलेगा
खुद को बड़ा बनाओ तो,
खुद के जख्म छुपाकर प्यारे
गैरों को अपनाओ तो…..
बस कहने से……..।।
नदी बड़ी है अहसासों की
नाले ताल तलैया सब,
एक बूँद आँखों से लेकर
सोयी नदी जगाओ तो….
बस कहने से………।।
पत्थर में भी पीर छुपी है
वह भी रोता है अक्सर,
कभी अकेले वीराने में
उसको गले लगाओ तो…..
बस कहने से …………।।
इनको तिनका कहना शायद
अपनी ही लाचारी है,
देखो कितनी आग छुपी है
चिनगी जरा दिखाओ तो……
बस कहने से………..।।
खुद्दारी की कीमत पूछो
जिसको सबने रौंदा है,
उसी धूल की जरा हवा से
बातें करो कराओ तो……
बस कहने से ……….।।
बहुत सरल है दिल के टुकड़े
करना और जताना भी,
घर बनते हैं मगर रेत की
कीमत जरा बढ़ाओ तो……
बस कहने से………..।।
रूखी सूखी अंतड़ियों में
जान अभी भी बाकी है,
जरा हौसले की मिट्टी से
उसपर देह लगाओ तो…..
बस कहने से ……….।।
बहुत हुआ अब तो मत बोलो
दुनिया शायद बहरी है,
समझाना तो बहुत सरल है
खुद को भी समझाओ तो…….
बस कहने से……….।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’