खुद को तुम पहचानों नारी ( भाग १)
हे नारी तुम सुन लो,सुन लो
सुन लो यें पैगाम ।
अपने जीवन की डोर को,
न दो किसी और के हाथों में लगाम ।
अपने हक को तुम पहचानों।
इसको न तुम भीख में माँगो।
हक से अधिकार न मिले तो,
इसको छिन कर ले लो तुम।
हे नारी, तुम पत्थर का
वह फोलाद बन जाओ।
जिस पर कोई चोट करे तो,
खुद ही घायल हो जाए।
हे नारी, तुम नदी का
वह धारा बन जाओ ,
जो अपने राहों में आने वाली
हर मुसीबत को अपने साथ
बहा कर ले जाती हैं।
हे नारी, तुम डर-डर कर
ऐसे ना रहा करो।
अत्याचार से तुम लड़ो
डटकर सामना करो।
हे नारी, तुम यों नही
आँसु बहाया करों।
इसको बहाकर खुद को,
कमजोर न दर्शाया करो।
तुम न निर्बल हो,तुम न दुर्बल हो,
यह सब को बतला दो ।
जो तुमको आँसु दे जाए,
तुम उनको आँसु लौटा दो।
हे नारी, तुम अपनी इच्छा
को यों न दफनाओं ।
अपनी खुशियों पर तुम
यों न कफन ओढाओं।
दफनाना ही हैं अगर तो
अपने डर को तुम दफना दो ।
शोषण करे तुम्हारा जो ,
तुम उस पर कफन ओढा दो।
तुम तो वो हों ,हे नारी,
जो यम से भी लड़ आई थी।
शावित्री बन अपने पति का
प्राण यम से छिन लाई थी।
ने नारी, तुम यों नही
अबला का रूप धरो,
धरना ही है तो हे नारी
दुर्गा का रूप धरो।
जिसने अपनी शक्ति का
लोहा मनवाया था।
जिसकी शक्ति के सामने
असुर भी थर-थराया था।
उनकी प्रचंड रूप कि चर्चा
तीनों लोकों में छाया था।
तब जाके देवो ने उनको
पूजा और पूजवाया था।
इतिहास के पन्नो को पलटों
और खुद को तुम पहचानों।
तुम कहाँ थे और कहाँ हो
खुद को तुम ध्यानों।
ज्ञान की देवी तुम ही थी ,
संतान की देवी भी तुम थी ।
यश की देवी तुम ही थी ,
ऐश्वर्य की देवी भी तुम थी ।
धन की देवी तुम ही थी ,
शक्ति की देवी भी तुम थी।
तीनों लोकों पर, हे नारी,
तेरा ही राज्य हुआ करता था।
क्षेत्र भले कोई भी हो पर,
अधिकार तेरा हुआ करता था।
एक बार फिर से हे नारी
अपना परिचय शक्ति से करा दो।
धरती से आसमान तक,
फिर अपना परचम लहरा दो।
तुम प्रबल हो,तुम सबल हो,
यह सबको बतला दो।
अपनी शक्ति दुनिया को,
फिर एक बार दिखला दो।
तेरे अंदर साहस और
हौसला भरी पड़ी हैं।
बस जरूरत है तुमकों
इसे एक बार खौला दो।
इतिहास गवाह है जब-जब,
तुने अपना सम्मान खुद किया हैं।
अपनी शक्ति को पहचान कर,
जग में अपना नाम किया है।
तेरे कई रूप आए और चले गये ।
पर इतिहास पटल पर अपना नाम ,
स्वर्ण अक्षरों में छोड़ गयें।
तुम कैसे भुल सकते हो
झाँसी वाली रानी को ।
तुम कैसे भुल सकते हो
रानी अहिल्या बाई को।
जिसने साधरण होते हुए,
असाधारण काम किया।
अपनी वीरता से उन्होंने
जग में अपना हैं नाम किया।
उन्होंने अपने कर्तव्य से
हमको यह समझाया।
अपना हक चाहते हो अगर
तो आवाज़ बुलंद करना तुम सीखों।
झुक कर रहने वालों को,
इतिहास भी याद नहीं करता हैं।
सम्मान अगर चाहते हो तुम
तो डटकर लड़ना भी पड़ता हैं।
किस्मत के भरोसे कब तक नारी
तुम यों ही रोते रहोगे ।
कब तुम अपनी क्षमता से ,
अपनी किस्मत को बदलोंगे।
-अनामिका