खुद को चोट लगाये कौन —— गज़ल
खुद को चोट लगाये कौन
पत्थर से टकराये कौन
दिल ये नित नित मांगे और
इस दिल को समझाये कौन
सब अपनी दुनिया मे मस्त
इक दूजे के जाये कौन
मार गयी मंहगाई आज
रोटी दाल खिलाये कौन
रंग बदलते रिश्तों को
शीशा रोज दिखाये कौन
ढोंगी साधू संतों से
अपना धर्म बचाये कौन
हक अपने सब मांगें आज
निर्मल फर्ज निभाये कौन