खुद को अब तड़पाना नहीं आँखो में लहु लाना नहीं
खुद को अब तड़पाना नहीं
आँखो में लहु लाना नहीं
टुट कर फ़िर टुट सकता हैं
रुलाकर फ़िर हंसाना नहीं
रहा हूँ ता-उम्र आगोश में
किसी और को सुलाना नहीं
छुपा लेना इश्क़ का मो-ज़्ज़ा
आँखो से इन्हें बतलाना नहीं
सुधर जाए काफ़िर तेरी अदा से
इतना दिल में उतर जाना नहीं
हैं इश्क़ एक आग का दरिया
तैर कर उस पार जाना नहीं
मिलु फ़िर जिस्म बदलकर
रुह को इस कदर सताना नहीं