खुद्दार कविता
राह मैंने ढूंढ ली है टोंककर भी क्या करोगे।
बन गया हूं मै हवा अब रोककर भी क्या करोगे।।
अब जुबां खामोश करलो रोकना बस में नहीं।
आज हाथी जा रहा है भौककर भी क्या करोगे।।
आपके जब बोलने की कोई कीमत है नहीं।
इसलिए तो है हिदायत बोलकर भी क्या करोगे।।
पाप में भी आपको कुछ ग़लत लगता नहीं।
इसलिए ही यार तुम कुछ तोलकर भी क्या करोगे।।
आपको तो हर जगह जब आ रहीं कमियां नजर।
मशविरा है इसलिए कुछ देखकर भी क्या करोगे।।
### कवि गोपाल पाठक (कृष्णा)
मीरगंज,बरेली(यूपी)
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