खुद्दारी
खुद्दारी
गाँव से अपनी बाइक से एक मित्र के साथ लौट रहा था। एक लंबा सफर तय करने के बाद कुछ सादा और हाइजीन खाने की इच्छा हो रही थी। रास्ते में ठेले पर एक व्यक्ति को भूजे बेचते देख अचानक से बाइक रोक कर गमछे से चेहरे को पोछते हुए नीचे उतरा। मित्र से यह बोल कर कि कुछ भूजा बनवाओ मैं सड़क के उस पर खेत मे लघुशंका के लिये हो लिया।
जैसे ही उधर से फारिग होकर आया, मित्र भूजे का आर्डर देकर बगल वाली दुकान पर नजर गड़ाये मेरी ओर देख कर मुस्कुरा रहा था।
“क्या हुआ” मैंने पूछा।
उसने आँख से उधर इशारा किया और मुस्कुराने लगा।
वस्तुतः हम एक बीयर बार के पास खड़े थे और मित्र की इच्छा भूजे के साथ मधुपान की थी। लंबे सफर से मैं भी थका कुछ विश्राम की चेष्टा व अपने आलेख हेतु एक समुचित पात्र के तलाश की संभावना में मित्र को इशारा किया और अंदर प्रवेश किया।
वही चिर परिचित दृश्य, कहीं हँसी की फुहार, कही अतिरेक मित्रता का स्पंदन, कहीं उदासी का माहौल तो कही हल्की फुल्की झड़प, कहीं बिरहा कहीं कव्वाली। कुल मिलाकर समता रस समाज के समाजवाद का बड़ा ही मार्मिक मनमाफिक दृश्य। न कोई दुश्मनी, न कोई झगड़ा। बस व्याप्त थी तो थोड़ी से प्यारी लंठई, थोड़ा सा प्यार और उदारता व प्यारी नोक-झोंक। किसी के चखने में हाथ बढ़ाने से पहले वह आपकी ओर प्लेट उठा देता, थोड़ा सा पानी मांगने पर पूरी बोतल थमा देता। एक सिगरेट चाहने पर पूरा डब्बा थमा देता। कितना मनोरम दृश्य था। कभी- कभी लगता कि कहीं हम किसी त्रेतायुग से भी बेहतर दुनिया मे तो नही आ गये। कुल मिलाकर भ्रातृ भाव से ओत प्रोत बड़ा ही विहंगम व नयनाभिराम दृश्य था।
खैर चखनेवाले के इशारे पर हम बगल के कमरे में पंखे के नीचे बैठ गये। हमारे ठीक सामने एक अंग्रेज सा दीखने वाला मझोले कद का सजीला युवक घनी दाढ़ी में अपना पूरा साजो सामान सजा कर अकेले बैठा था- पानी की बोतल, बढ़िया वाइन, गिलास व काजू मिश्रित चखना, हाथ मे आईफोन कान मे इयर फोन। उसने मौन हमारा स्वागत किया। मित्र ने भी वही अपनी गिलास लगा ली, मैं भी चखने का आनंद ले रहा था। लंबी सफर के बीच पंखे के नीचे चखने व ठंडे पानी के साथ एक अव्यक्त सुख का अनुभव कर रहा था। तभी मित्र ने कहा-
” ई अंग्रेजवा इँहा का करत हौ, गजब के शौकीन देखात हौ भैया ”
मैंने कहा कि – ” कही आस पास ही रहता होगा”
“लेकिन भैया यहाँ ई कैसे आया होगा” मित्र ने गिलास उठाते हुए कहा।
वह युवक हमारी ओर देख कर मुस्कुराया।
मैंने मित्र से कहा-” अरे यार ई लगत हौ हमार भाषा जानत त नाही हौ”
” का भैया आप भी गजब है, मान ला थोड़ बहुत हिंदी जानत भी होई त हमने के भोजपुरी का समझी ”
तभी मेरा पानी समाप्त होने पर मैंने मित्र से पानी लाने को कहा, तभी उस युवक ने इशारे से रुकने को कहते हुए अपना गिलास मुहँ से हटाया और अपने ठंडे पानी की भरी बोतल व चिकने की प्लेट मेरी ओर बढ़ा दी। अब आश्चर्य होने के बारी हमारी थी। मित्र की हालत अब खराब हो रही थी। मैंने मौके की नाजुकता भांपते हुए उस अजनबी से पूछा-
” बाबू कहाँ डेरा बा ”
“बस भैया पजरवे के बाटी”
मित्र के चेहरे पर अब और हवाईयां उड़ने लगी थी।
मैंने बात आगे बढ़ाई
” बाबू हमारे मित्र आपको अंग्रेज समझ रहे थे”
कान से इयरफोन निकालते हुए बोला-
” हाँ मैं भी सब सुन कर आनंद ले रहा था, कई बार लोगो को भ्रम हो जाता है, अब ऐसा ईश्वर ने बनाया ही है”
” और कहाँ पोस्टेड है आप ”
” सर, अभी तो मैं बेरोजगार हूँ , जॉब की तलाश में हूँ”
” फिर इस तरह के शौक बाबू उचित नही है” अब मैं उसके बड़े भाई की भूमिका में आते हुए उसे समझाने की मुद्रा में बोला ।
” नही सर मेरे पिताजी एक अच्छे सरकारी जॉब में है, मैं यही पास में पिताजी के आदेश पर अपना मकान बनवा रहा और अपनी तैयारी भी कर रहा। सर मेरे पिताजी बहुत परिश्रम करते है, उनके पसीने के एक-एक बूंद की कीमत मैं जानता हूँ, इसलिए उनके एक भी पैसे को इसमें मैं जाया नही करता। मैं सर इसके लिए ट्यूशन आदि से अपनी व्यवस्था स्वयं करता हूँ। वैसे भी कभी-कभी ही थकने पर इस शौक के लिये यहाँ आता हूँ। महंगा शौक है मेरे एफर्ट्स के बाहर है, कहते हुए उसने अपनी खैनी की डिब्बी निकालते हुए पुनः कहा कि मैं अपने पापा के एक-एक पैसे की कीमत जानता हूँ सर, उम्मीद है शीघ्र उनके बोझ को हल्का कर पाऊंगा, बस आप जैसों के आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ।
मैं मौन किंकर्तव्यविमूढ़ उसे देखता रहा। उस युवक की बेबाक खुद्दारी से भरी बातों पर मोहित होकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए एक बड़े भाई की तरह आशीर्वाद से सिंचित किया इस शौक को आदत न बना लेने का निवेदन किया। उस युवक की मौन स्वीकरोक्ति पाकर मुझे आज के मेरे पात्र की तलाश शायद यही समाप्त हो गयी। पुनः विस्मय की मुद्रा में अवाक अपने मित्र के साथ अपने सफर पर आगे निकल पड़ा।
सदा बोलने वाले मित्र के मुहँ पर उस बेरोजगार युवक की बेबाक खुद्दारी की बातें सुनकर आज ताला लग चुका था। मैंने उसका मौन तोड़ते हुए उसे लस्सी पीने का आह्वाहन करते हुए एक दुकान पर अपनी बाइक रोकी और माहौल को हल्का किया।
निर्मेष