खुदा है भी या नहीं ! (ग़ज़ल)
खुदा है भी या नहीं ! (ग़ज़ल)
सूना था कभी अपने बुजुर्गों से ,याद रखना ,
खुदा की ज़ात से ना कभी इंकार तुम करना .
खुदा का वजूद है हकीक़त है वो ख्वाब नहीं,
किसी भी सूरत में उसपर अपना यकीं मत खोना .
किस्मत गर रूठ जाये,बेशक ज़माना बदल जाये ,
लेकिन वोह तुम्हारे साथ है ये इत्मिनान रखना .
सुना तो ये भी है उसके पास है बहुत बड़ी अदालत,
अपने इन्साफ के लिए उसका दरवाज़ा खटखटाना .
खुदा के घर देर है अंधेर नहीं ,यह भी याद रखना ,
सब्र लिए दिल में उसकी रहमत का इंतज़ार करना .
मगर आजकल जैसे हो रहे है हमारे वतन के हालात ,
तो बहुत मुश्किल है सब्र और इत्मिनान खुदा पर रखना .
नहीं है ना उसकी नज़रे करम इस बेचारी धरती पर,
तब तो वाजिब है न शैतानो के होंसले बुलंद होना.
वेह्शियों के बीच फंसी रोती बिलखती अबला को,
ज़रूरी है न खुदा को आकर उसकी लाज बचाना .
मगर ! यह सच है ,नहीं सुन रहा ,खुदा किसी की पुकार ,
कर देता है वोह आजकल ,दर्द भरी चीखों को अनसुना.
खून- खराबा ,क़त्ल और बलात्कार का छाया है अन्धेरा ,
मगर अब उसका काम रह गया है परदे के पीछे से तमाश देखना .
कोई तो उसे पुकारो ,कोई तो सदा दो, है किसी की आहों में दम ,
कहो उसे जाकर अच्छा नहीं है यूँ मजलूमों से निगाह फेरना.
दुनिया के मालिक बने फिरते हो ,तो क्यों नहीं आते जोश में ,
मिटा दो सारे पाप की जड़ को ,और कहो आकर ”मैं हूँ न “!
खुदा ! तुम हो भी या नहीं ,यह साबित करके दिखाओ ,
लेकर अवतार धरती पर बेहद ज़रूरी है तुम्हारा कदम रखना .