खुदा मुझको मिलेगा न तो (जानदार ग़ज़ल)
$$ ग़ज़ल $$
ख़ुदा मुझको मिलेगा न तो पत्थर ही सही लेक़िन ।
इबादत दिल से करता हूँ मैं अक़्सर ही सही लेक़िन ।
तेरे हाथों में देखा कल ख़ुदी के नाम का ख़ंजर ।
मिले न प्यार तो दिल पर वो ख़ंजर ही सही लेक़िन ।
तेरी यादों से ऐ हमदम ! महज़ इतनी शिफारिश है ।
रहे बनकर मेरे दिल में सितमगर ही सही लेक़िन ।
किसी भी शर्त पर तुमको कभी मैं खो नही सकता ।
तेरे बदले मिले ग़म का समन्दर ही सही लेक़िन ।
कभीआकर मिलो मुझसे किसी महफूज़ साहिल पर ।
मुकम्मल देख लूँ चेहरा नजऱ भर ही सही लेक़िन ।
यकीं कर ले मुहब्बत में बसा दूँगा तेरी दुनियां ।
ख़ुदी के दिल की बस्ती को लुटाकर ही सही लेक़िन ।
मेरे क़िरदार से ‘रकमिश’ तुम्हें कैसी परेशानी ?
इशारों में कहो कुछ तो छिपाकर ही सही लेक़िन ।
✍ रकमिश सुल्तानपुरी