खुदा तेरे इर्द – गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
खुदा तेरे इर्द – गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
खुदा तेरे इर्द—गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा हर एक के दिल में रहता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा गमगीनों की आह में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है, तो और क्या है
खुदा हर एक की दुआओं में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा पालने के शिशु की मुस्कान में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा हर एक की जीत और हार में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा हर एक की ख़ुशी और ग़मों में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
तेरे बुरे दिनों में भी वो तेरे साथ होता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है
खुदा तेरे इर्द—गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है , तो और क्या है