खुदा की रज़ा
कोई गुनहगार कब खुद को गुनहगार मानता है ,
यह तो सब खुदा के इख्तियार में है ।
वोह चाहे तो उसे उसके गुनाहों का एहसास करवाए,
उसके जमीर पर तीखी चोट करे ,
जिससे उसका तकब्बुर छलनी हो जाए ।
मगर उसकी खामोशी यह जाहिर कर रही है ,
जो कुछ हो रहा है आज के दौर में,
सब उसकी रज़ा में है ।