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23 Jun 2019 · 1 min read

खिड़कियां

कभी कभी लगता है..
एक ख्याल जगता है..
हम सब मग्न है…
सीमित हैं..
अपनी अपनी खिड़कियों में..
इन्ही खिड़कियों से ही..
हम चुरा लेते हैं..
अपने हिस्से की हवा, ज़मीन..
और आसमान..
कोई थोड़ा कोई ज्यादा..
खिड़की ही अब पहचान..
देखता हूं हर तरफ ये खिड़किया..
खिड़कियों से घिरी हुई..
हर तरह की खिड़कियां..
धूल से सनी हुई..
कुछ हैं धुली हुई..
आरसे से कुछ बंद हैं..
कुछ अभी खुली हुई..
शोरगुल में झांकती..
अपरिचित सी ताकती..
खिड़कियों से घिरी हुई..
बैचेन सी हैं खिड़कियां..
कुछ नहीं हैं बांटती..
अकेले ही सहती हैं..
जिंदगी की झिड़कियाँ..

Language: Hindi
1 Like · 577 Views
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