खिलौनों का सफ़र
खिलौनों का सफ़र
ज़ीस्त यह है बस खिलौनों का सफ़र,
कोई सस्ता, कोई महंगा खिलौना है।
है बना कांच से कोई मिट्टी से
हां जी, अंजाम फना होना है।
तुम्हें बताऊं मैं इक बात, ध्यान से सुनना,
हूं मैं मिट्टी का खिलौना ज़रा ध्यान से चुनना।
मुझसे हंसकर वो बोला सुन ए मिट्टी की बला
ग़र जो टूटी तू ज़रा, पानी से फिर दूंगा गला।
नया आकार दूंगा और नया संसार दूंगा
क्यों तू इतनी घबराती जिंदगी संवार दूंगा।
बस, फिर सुनो मैं हुई तैयार मिट जाने को
समझ न पाई जन्म मरण के अफसाने को।
नीलम शर्मा