खिलौने का मोह…..
नहीं छोड़ पाया अपने खिलौने
का मोह वो बालमन!
छीना-झपटी करते रहे घण्टों
एक-दूसरे के संग!
नजर मेरी टकटकी लगाये देख
रही थी उनके गुन!
सहसा एक किनारे जा खड़ा हुआ
वह शिशु खिलौने संग!
माँ बुलाती रही बाबू आ जाओ!
वह अनसुनी सी करता!
मोह था उसे अपने खिलौने संग
बाँटना नहीं था दूजे संग!
माँ के समीप जाने पर और तेजी
लाता कदमों संग!
बहला-फुसलाकर माँ वापस लाती
करती बच्चों संग!
कुछ बिस्किट और फ्रूटी देती सबको
गिर न जाये कपड़ों पर
सीधे मुँह के अन्दर देती!
उत्साह दूना हुआ बच्चों का
खेल के संग!
सबकी नजरें बच्चों पर ही टिकती
माँ को था मोह बच्चे से
व्यथित हुई चिन्तित हुई बोली अपनी
सखी से, घर जाकर
राई-नोन से नजर उतारना होगा!
सबकी नजरें है बच्चों संग!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार,रायबरेली(उ0प्र0)