खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
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खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
छेड़ने के पूर्व उठती सिहर इतनी रागिनी क्यों?
फुसफुसाकर तुम बुलाती इसलिए क्या?
शर्म में से डूबी हुई सी भाग जाती इसलिए क्या?
पास आते ये अधर जाते लजा हैं इसलिए क्या?
माँगता मधु प्रणय प्यासा इसलिए क्या?
जन्म से अनजान करते आत्म–अर्पण।
प्राण में हम प्राण का विह्वल समर्पण।
युग–युगान्तर से अलग एक रैखिक हो रहे हैं इसलिए क्या?
प्रणय का सिन्दूर तेरे माँग में भर प्रणय–याचना कर रहे हैं इसलिए क्या?
खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
हाँ चमकती आज इतनी यामिनी क्यों?
खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
आज अन्तर में छिटकती दामिनी क्यों?
दूर तक चेहरा तुम्हारा नजर आवे इसलिए क्या?
जिस्म दो पिघले‚मिले हो एक जाये इसलिए क्या?
सोचना क्या जिन्दगी दो पर‚ जियेंगे एक ही क्षण।
एक जीवन‚एक प्रण–मन एक ही निःश्वास पावन।
और तो निःशेष माटी ही रहा है‚वह रहेगा‚सोचना क्या?
प्रणय बन्धन टूट जाये पूर्व इसके मिट चुकें हम‚सोचना क्या?
खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
स्याह सी यह रात इतनी भावनी क्यों?
माँग में सिन्दूर रात्रि के भरेंगे इसलिए क्या?
चुम्बनों से तृप्त कर देंगे उसे हम इसलिए क्या?
तृप्त हिय से आज कर देंगे सुहागिन।
डँस सकेगी आज तो उसको न नागिन।
दानकर सर्वस्व तुमको आज तुमसे माँगते हैं इसलिए क्या?
पा हमें सौभाग्यशाली जो हुआ है आज हम सौभाग्य उनसे
खिलीखलाती आज इतनी यामिनी क्यों?
यामिनी के इस प्रहर में चाँदनी क्यों?
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