खिलाफ़त का शोर सुनाई देता है…
अहसानों का बोझ गवाही देता है
खिलाफ़त का शोर सुनाई देता है…
इसे कैसे मोहब्बत का नाम दें ए दिल
हर तरफ मतलब दिखाई देता है…
एहसासों का समंदर समेटा है खुद में
उन्हें बस कौजा-ए-मुट्ठीभर दिखाई देता है…
जरूरी नहीं ज़ुबाँ अपनापन बयाँ करें
ये हुनर तो आँखों में दिखाई देता है…
छोड़ तो दें उन्हें, उनके हाल पर मगर
फ़िक्र में फिर भी वो हरजाई दिखाई देता है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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