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9 Jul 2022 · 1 min read

खिलता गुलाब हो तुम

******** खिलता गुलाब हो तुम *******
*********************************

सीधे सवाल का उल्टा सा जवाब हो तुम,
सीधी समझ न आए उलझी किताब हो तुम।

खिलती कली जहाँ कोई भंवरा टपकता,
फूलों भरी पिटारी खिलता गुलाब हो तुम।

है खूब गठीला कंचन शरीर कोमल,
यौवन भरा नजारा दिलकश शबाब हो तुम।

ये अधर मयकशी प्याले जाम हसीं तेरे,
ऑंखें बहुत नशीली जैसे शराब हो तुम।

हम तो डरे-डरे सोहबत का असर हुआ है,
बादल भरा गगन है मौसम ख़राब हो तुम।

देखा जिसे कभी था वो भी नजर न आए,
अंजान चेहरे पर ओढा नकाब हो तुम।

कोशिश हजार की मनसीरत न काम आई,
कोई बता न पाए टेढ़ा हिसाब हो तुम।
*********************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
164 Views
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