‘खिदमत’
‘खिदमत’
अश्क किसी के आँखों में
देखो अगर ,
पोंछ लेना उन्हें तुम
अपना समझकर।
पेट खाली कभी कोई
दिख जाए तो ,
दो निवाले खिलाना तुम
अपना समझकर।
हर जिस्म में होता है
खुदा का ही घर ,
कर रूह की खिदमत
अपना समझकर।
प्यासे को पानी
और ग़रीबों को चादर ,
हमेशा उड़ाना तुम
अपना समझकर।
खिदमत कभी भी
जाया नहीं होती,
हर इंसा से करना मौहब्बत
तुमअपना समझकर।