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29 Nov 2016 · 1 min read

खिजाओं में भी जो फूल खिला देती है

खिजाओं में भी जो फूल खिला देती है
मायूसियों में उम्मीद जगा देती है

आधी -अधूरी सी दुनियाँ को मेरी माँ
अपने प्यार से मुकम्मल बना देती है

बिन माँ के बच्चों से पूछो माँ की क़ीमत
ये दुनियाँ उनका क्या हाल बना देती है

हर-सू नज़र आता है मुझे नूर खुदा का
मेरे दर्द पे जब माँ अश्क़ बहा देती है

ख़ौफ़-ओ-परेशानी में भी माँ की छाया
अब भी चैन की नींद सुला देती है

अजब शख्सियत आता की है माँ को रबने
जख़्म दे औलाद तो भी दुआ देती है

कमियों को ‘सरु’ हमेशा भुला देती है
इधर देखा मुझे उधर वो मुस्कुरा देती है

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