*** खिचड़ी ****
*** खिचड़ी ****
दोपहर १ से २ बजे भोजन का अवकाश समय राजू के पास १ घंटा , इसमें घर के कार्य , साथ में ऑफिस की पोस्ट ऑफिस में देने की डाक , बैंक और अनगिनत कार्य | यह समय में बहुत से कार्य का निपटारा करते – करते भोजन का निवाला बस गटा – गट खाना है | जैसा भी भोजन बने प्रसाद समझकर खाना है |
जया और पड़ोस की महिलाये बातो में बहुत मग्नं थे | ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मिडिया प्रबंधन व् मिडिया की महिलाये यही हो , सम्पूर्ण जिम्मा इनकी कंधो पर हो | पड़ोस में किसी की क्या “खिचड़ी पक रही है” , कान
लगाकर , नयन मटकाकर बहुत हौले – हौले बाते सभी चारों महिलाये गपशप कर रही थी | अपना एव परिवार का क्या होगा ? लेकिन पडोसी कैसे सुखी है , उससे सभी बहुत आहत , दुःखी है |
फिर किसी महिला ने जया को कहाँ भैया आये है , भोजन परोस दे दो , जया ने कहाँ रहने दो ले लेगें , एक दिन भी सब्जी लेकर देते नहीं , घर का काम किसी प्रकार से करते नहीं , बस राह चलते को पानी देंगे ,
गाय को रोटी देंगे , किसी दूसरे महिला ने कार्य बता दिया तो तुरंत हाँ कर देगें | मोबाईल चैट , फेसबुक ,
व्हाट्सप , आकर्षक चित्र देखना यही काम रह गए है ?
आज राजू बहुत खुश था , आज शाम को बहुत स्वादिष्ट , चटपटा भोजन मिलेगा | लेकिन जया ने
भी दिन भर कार्य से थक गयी हूँ | कमर दर्द , बहुत दुबली हो गयी हूँ , आलस कर के बहाना बना
कर वही दाल चावल की ” खिचड़ी ” बना दी …….
मैंने भी भगवान का प्रसाद समझकर ” खिचड़ी ” खाना ही उचित समझा …….
@ कॉपीराइट – राजू गजभिये (RG) बदनावर