खिंचता है मन क्यों
खिंचता है मन क्यों
बरबस तेरी ओर।
नज़रों की पैमाइश क्यों,
हरपल होती तेरी ओर।।
है नरम नरम सा एहसास
जो तुझसे जुड़ता जाता
न देखूँ तो तुझको मन
बुझा बुझा रह जाता
उठी पलक जो तुझको पाऊँ
आए राहत की साँसे
कौन मेरा तू मैं न जानूँ
जुड़े हुए क्यूँ मेरी तुझसे एहसासे
न कुछ तुझसे पाने की चाहत
न तुझको पाने की
अनकहे प्रेम की ये सौगातें
है मेरे अपनाने की।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )