Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jun 2018 · 5 min read

खाली दिमाग़!!!

Idle mind devil’s workshop. जी हाँ,खाली दिमाग अर्थात ??☠️?शैतान का घर और जिस हिसाब से हर जगह कंस्ट्रक्शन चल रही तो अपार्टमेंट,बिल्डिंग, पेंटहाउस,बंग्लो कुछ भी कह लो, रहता उसमें शैतान ही है।15 दिन बीत गए हैं छुट्टियों के हम तो कहीं गए नहीं पर श्री श्री श्री 108 वें अखंड महाआलस्य महाराज बोरी बिस्तर बाँध कर साक्षात् मेरे भीतर प्रकट हो चुके हैं,फिर पूरी आस्था,लग्न और जिस आलस से मैं रात को देरी से सोती हूँ , उसे दुगना करके श्रद्धालु की तरह मोबाइल अर्चना के लिए बैठ जाती हूँ।केंडी क्रश, लूडो, पब जी,अस्फाल्ट 8 ऑनलाइन गेम्स से जब बोर हो गई तो सोचा कि अब क्या करूँ? टें टें ण………और यहाँ होती है दिमाग़ में शैतान की
5 डी एंट्री। एंट्री भी ऐसी कि नार्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग की परमाणु के रिमोर्ट के साथ एंट्री फ़ेल।
ऊपर से ग़लत फ़हमी की मैं लेख लिख सकती हूँ।छुट्टियों में ऐसी ही दुर्दशा होती है टीचर्स की ।खाली छुट्टियाँ देने की बजाय nature के करीब एक लंबी ट्रिप ऑर्गनाइज़ करनी चाहिये सरकार को,नहीं तो जो टीचर्स टीवी पर सीरियल, क्राइम पेट्रोल और ” सन्नाटे को चीरती सनसनी” जैसे प्रोगराम देखती हैं उनके परिवार वालों का क्या होगा!तो मोदी जी अच्छे दिनों में मेरे सुझाव को भी शामिल करें, बहुत से पतियों की दुआएँ मिलेंगी पप्पू को पछाड़ने में।
अब चूंकि मेरा दिमाग़ एक पेंटहाउस में कन्वर्ट हो गया तो श्री श्री 108 वें अखंड महाआलस्य महाराज शैतान जी आये। पहले ये रेड लाइट पर मिलने वाले रेड इलेक्ट्रिक सींगो वाले ?शैतान का स्टाइल फॉलो करते थे,फिर चन्द्रकान्ता के क्रूर सिंह की तरह काले वस्त्र और सिर के बाल मानों करंट से खड़े हुए हों,इतने से भी दिल न भरा तो कम्प्लेक्सन हुआ और अब एनिमेटिड श्रेक(श्रेक मूवी के हीरो) की तरह आते हैं। भाईसाब,गज्जब !!! फुकरे मूवी के पात्र चूचिये के सपनों से भी ख़तरनाक एक से बढ़कर एक आइडियाज दिए। भई! क्या तूफानी आइडियाज दिए,वैसे वो तो मैं बताने से रही!

छुट्टियाँ हैं कुछ करो ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है, इससे पहले तुम किचन में एक्सपेरिमेंट करके हमें व्रत करने पर मजबूर करदो, तुम जिम ज्वाइन करलो थोड़ी एक्सरसाइज़ करलो, वज़न बढ़ रहा है तुम्हारा- पति परमेश्वर बोले, भई डायरेक्ट मोटी थोड़े न कह सकते हैं, पूरी छुट्टियाँ बाकी हैं हमारी। पर हम पर तो श्री श्री 108 वें अखंड महाआलस्य महाराज जी छाए हुए हैं। न्यूज़ देखते देखते विचार आया कि दादा जी कहते थे कि पहले पुराने नेताओं का चाल चरित्र ऐसा होता था कि अपने आप श्रद्धाभाव पैदा हो जाता,प्रशासन में उनके नाम की धाक होती थी।केवल नेता ही नहीं, तब प्रशासनिक अधिकारियों में भी गजेटेड ऑफिसर का मतलब ईमानदारी का ठप्पा होता था।इतने राजनैतिक दल भी नहीं थे।अब तो दलों की बाढ़ सी आई है एक तो इतने न्यूज़ चैनल हो गए हैं 5 मिनट में 200 खबरें पढ़ने के कॉम्पिटीशन में ख़बर के नाम पर कुछ भी बोलते हैं, ऊपर से हर चेनल पर पक्ष विपक्ष के नेता कुकुर्मुत्तों की तरह लड़ते दिखाई व सुनाई देते हैं तभी नेतागिरी और पत्रकारिता का अवमूल्यन भी शुरू हो गया है।
राजनीती और नेतागिरी व्यापार तुल्य हो गई है या कहो पूरा तन्त्र भ्रष्ट हो गया है। माना कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन इस सच्चाई को नहीं नकारा जा सकता है कि पूरे कुँएं में भाँग घुली है और नेता तो होते ही मेंढक हैं जो बारिश होते ही बाहर निकल आते हैं एवं एक दूसरे को चोर साबित करने में जुटे रहते हैं,after all “खाली” दिमाग शैतान का घर।
वैसे देखा जाए तो हमारे देश में जो घट रहा है, ये सब मुद्दे मुद्दे हैं ही नहीं- न पप्पू पार्टी,न केजू, न जेएनयू, न राष्ट्रविरोध, न जाट, न आरक्षण, न हिन्दू कट्टरवादी, न मुस्लिम कट्टरवादी, न मन्दिर, न मस्जिद, न गाय और सूअर के मांस पर प्रतिबन्ध और न ही कुछ और।वस्तुतः समस्या कहीं और है।समस्या है हमारे दिमाग का खालीपन जो बेकार, गैरज़रूरी, निष्क्रिय, नकारात्मक, कुंठित, फ़ालतू ख्यालों से भरा रहता है. प्रतिद्वंदिता के इस युग में, जब देशवासियों को देश की उन्नति के लिए नए-नए आविष्कारों के बारे में सोचना चाहिए, सामूहिक खुशहाली पर बल देना चाहिए, नए-नए विचारों को जगाना चाहिए, हमेशा देश की तरक्की की बात सोचनी चाहिए, हम व्यर्थ की बहसों में उलझे हुए हैं, अपने व्यतिगत स्वार्थों की पूर्ती हेतु आज इससे तो कल उससे झगड़ रहे हैं। ज़रा ज़रा सी बात पर मरने मारने पर उतारू रहते हैं, रिश्तों की अहमियत खोते जा रहें हैं और संस्कृति संस्कार Mr. India के अनिलकपुर की तरह गायब होते जा रहे हैं,क्योंकि भूख का अहसास नहीं है, हम सबका पेट भरा हुआ है।भूखे पेट आदमी सिर्फ रोटी की सोचता है।पेट भरा हुआ है, इसलिए उल जुलूल विचार सूझते हैं।जी हाँ! सही पकड़े हैं,पेट भरा हुआ है लेकिन दिमाग खाली……….! और खाली दिमाग शैतान का घर।हमारी चर्चाओं का विषय देश का विकास क्यों नहीं है? क्या हम विकास-विरोधी हैं? विकास-विरोधी यानि राष्ट्र-विरोधी। हम सबके दिमागों में लड़ाई के कीड़े घुसे हुए हैं,जो कुछ खुराफाती करने को बिलबिलाते रहते हैं ,कल ही न्यूज़ में दिखा रहे थे कि हमारे राष्ट्रपति जी की धार्मिक यात्रा को लेकर किसी खुराफाती ने यह भ्रांति फैला दी कि उन्हें मंदिर के अंदर पूजन नहीं करने दिया नतीजा एक व्यक्ति ने सरेआम मंदिर में पुजारी समेत सब पर तेज धारदार हथियार से हमला कर दिया।तो कभी फेसबुक पर कोई एडिटिड वीडियो(बिना असलियत जाने) देखके धर्म के नाम पर हिंदु मुस्लिम समुदाय आपस में भीड़ जाते हैं,हम इस दिशा में क्यों नहीं सोचते कि हमारा देश विश्व गुरू हुआ करता था अब भी विश्व में सर्वोपरि हो, भारत आज विकसित देशों में शुमार है तो क्यों न तकनीक में, सुख-सुविधाओं में, सौंदर्य में, प्रेम-भाईचारे में, आर्थिक ऊँचाई पर, भौतिक ऊँचाई पर, नैतिक ऊँचाई पर हमारा परचम लहराए।हमारा देश जो आज है, कल उससे बेहतर हो।सोचिए, सोचिए। वैसे देखा जाए तो खाली दिमाग तो भगवान का घर होता है बशर्ते वह पूर्णरूपेण खाली हो और खाली होने की तरकीब है- ध्यान। “खाली होना।” दिल से, दिमाग से, विचार से, सब ओर से पूर्णरूपेण खाली हो जाना। जब आप अपने इस पंच तत्वों से निर्मित देह रूपी घड़े को खाली करने में सक्षम हो जाते हैं तब इस घड़े में परमात्मा रूपी अमृत भरता है। तो अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम ध्यान व् योग से इस अनुभूति को प्राप्त करें या फिर अपने मस्तिष्क को किसी शैतान रूपी विचार को पेइंग गेस्ट रख लें।????
नीलम शर्मा…..✍️

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 540 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...